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करमा पूजा का रहस्य! कुंवारी लड़कियां ही उठाती हैं जावा, इसके पीछे है गूढ़ रहस्य!

News Pratyaksh | Updated : Fri 22nd Sep 2023, 12:00 am
करमा पूजा का रहस्य! कुंवारी लड़कियां ही उठाती हैं जावा, इसके पीछे है गूढ़ रहस्य!
करमा पूजा में डाली उठाने का कार्य कन्याएं ही करती हैं| इसके पीछे भी एक गूढ़ रहस्य निहित है| कन्याएं धरती का ही रूप मानी जाती हैं| बीज धारण करने की क्षमता धरती में होती है और वैसे ही सृष्टि को आगे बढ़ाने का सामर्थ्य नारी में है|
महान प्रकृति पर्व 'करमा' में प्रधान रूप से चार महत्वपूर्ण और अनिवार्य तत्त्व हैं- जावा डाली, करम डाइर, अनगिनत जावा गीत और करमा-धरमा की धर्मकथा| समस्त पर्व में इन तत्त्वों की अपनी अपनी महत्ता है| जावा डाली इस पर्व के विदित है| जावा डाली झारखंड की बहनों द्वारा विधि विधान से नदी के बालू में एक उथरी टोकरी में सघन रूप से बुने गए बीजों के अंकुरण और प्रारंभिक पल्लवन का नाम है| कर् माएकादशी के नौ दिन, सात दिन या पांच दिन पूर्व जावा डाली के उठाने की प्रक्रिया होती है| इस महानतम पर्व के इस प्राण तत्त्व में गहरा दर्शन समाहित है|
कन्याएं ही क्यों उठाती हैंडाली?
वस्तुतः जावा डाली के द्वारा हम बीजों की पूजा करते हैं| बीज, सृष्टि का आधार हैं| जैव जगत की निरंतरता के लिए बीज की अनिवार्यता है| इसी परम सत्य को जावा डाली के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है| इस पर्व में डाली उठाने का कार्य कन्याएं ही करती हैं| इसके पीछे भी एक गूढ़गू रहस्य निहित है| कन्याएं धरतीस्वरूपा हैं| बीज धारण करनेकी क्षमता धरती में होती हैऔर इसी तरह सृष्टि को आगे बढ़ाने का सामर्थ्य नारी में है| इस परम सत्य को सांकेतिक तौर पर कन्याओं को बताया जाता है| जावा डाली इसी सत्य का प्रतीक है| अप्पकी जानकारी के लिए, जावा डाली में अधिकतम नौ प्रकार के बीजों के वपण का विधान है, और नौ सबसे बड़ी मूल संख्या होने के कारण पूर्णता का द्योतक है|
अर्थात जावा डाली में समस्त बीजों की अभ्यर्थना की जाती है| बीजों में निहित शक्ति और उसकी महिमा का वंदन किया जाता है.
करम पर्वका पहला गीत “इति- इति जावा किया-किया जावा...सेहो रेजावा एक पाता सइ रे..” बीज की महत्ता को निरूपित करता है|
जानिए करमा-धरमा की कहानी!
इस पर्वका दूसरा अनिवार्य तत्व है करम डाइर|उपवास की रात अखरा में 'करम' वृक्ष की डाली को स्थापित किया जाता है| इसका मतलब होता है की, भाइयों को, अर्थात्पुरुष वर्ग को अपने कर्मों दायित्वों के प्रति गड़े करम डाल की तरह अडिग रहना, जीवन के कर्मों के प्रति सदैव प्रतिबद्ध रहना| उपवास की रात को करम अखरा में वाचन-श्रवण की जाने वाली 'करमा-धरमा' की लोक कथा इस महान पर्व की धर्मकथा है| इसमें निहित संदेश शाश्वत जीवन-दर्शन से युक्त है| इसमें बताया गया है कि मानव जीवन में कर्म के साथ धर्म का समन्वय आवश्यक है| केवल कर्म से हम भौतिक परिणाम तो पा सकते हैं, पर कर्मों को यदि नीति और आदर्श से हीन कर दें तो उसकी कोई महत्ता नहीं रह जाती है| धर्महीन व्यक्ति की उपयोगिता नष्ट हो जाती है, उसका जीवन विकृत-विद्रूपद्रू हो जाता है| कथा में करम गोसाईं के रूठ कर 'सात समुंदर टापुपार' चले जाने का प्रसंग भी हमें धर्म विहीन जीवन में खुशियों के रूठ जाने की प्रतीकात्मक सीख देता है|